ग़ज़ल: ज़िंदगी क्या है…© Mrs . Satwinder Kaur
ग़ज़ल: ज़िंदगी क्या है…
गिरना नहीं, उठना ही ज़िंदगी है,
अंधेरों में भी, जलना ही ज़िंदगी है।
रुकना नहीं, बढ़ना ही मंज़िलों का राग है,
हर झटके पर भी, सँभलना ही ज़िंदगी है।
हारना नहीं, जीत का सपना लेकर रहो,
हौसलों के साथ ही, बनना ही ज़िंदगी है।
बुरा नहीं, अच्छा करना सीख लो,
नेकी के साथ ही तो, चलना ही ज़िंदगी है।
झूठ नहीं, सच में ही रोशनी है,
सच के रास्ते पर, रहना ही ज़िंदगी है।
नफ़रत नहीं, प्यार से दिल सजाओ,
मोहब्बत बाँटकर, मुस्कुराना ही ज़िंदगी है।
हर मुश्किल में छुपा है कोई नया सबक,
हर दर्द सिखाता है, जीना ही ज़िंदगी है।
कभी हार न मानो, वक्त भी झुकेगा,
ख़ुद पर भरोसा रखो — यही ज़िंदगी है।
© सतविंदर कौर

